Hindi Sahitya Mein Adivasi Nari (हिंदी साहित्य में आदिवासी नारी)
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हिंदी साहित्य के विशाल फलक पर आदिवासी साहित्य एक नई और अनिवार्य चेतना बनकर उभरा है। यह केवल एक सामाजिक विमर्श नहीं है, बल्कि उस मूल निवासी स्वर की अभिव्यक्ति है जिसे सदियों से हाशिये पर रखा गया। इस विराट् धारा में, आदिवासी महिलाओं का लेखन एक 'कोर-संवेदना' (Core-Sensation) के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।
यह संपादित पुस्तक उसी 'कोर-संवेदना' को केंद्र में रखती है। यह संकलन आदिवासी स्त्रियों के जीवन, संघर्ष, प्रेम, संस्कृति और उनके राजनीतिक प्रतिरोध को उनकी स्वयं की जुबान में प्रस्तुत करने का एक गंभीर प्रयास है। हम मानते हैं कि जब तक किसी समाज की स्त्रियाँ अपनी कहानी स्वयं नहीं कहतीं, तब तक वह कहानी अधूरी रहती है।
मुख्यधारा के साहित्य में आदिवासी स्त्री को अक्सर या तो रोमांटिक 'आदिम' बिम्ब के रूप में देखा गया है या फिर केवल विस्थापन की पीड़ित इकाई के तौर पर। लेकिन आदिवासी महिला लेखिकाएँ इस पूर्वाग्रहपूर्ण फ्रेम को तोड़ती हैं। उनकी रचनात्मकता उस दोहरे विस्थापन की कहानी कहती है। सबसे पहला बाहरी विस्थापन है जिसमें जल, जंगल और ज़मीन से बेदखली, पूंजीवादी शोषण और राज्यसत्ता की उपेक्षा के कारण उपजा दर्द है। दूसरा विस्थापन आंतरिक संघर्ष के कारण अपने ही समाज की भीतरूनी पुरुषसत्तात्मक जकड़नों, अंधविश्वासों और रूढ़ियों से मुक्ति पाने की छटपटाहट के साथ होता है। हिंदी साहित्य में आदिवासी लेखन
केवल 'दर्द का बयान' नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा के लिए एक सशक्त 'प्रतिरोध का दर्शन' है।